Thursday, December 9, 2010

शायरी


1.बस तेरी याद में लिख लेता हूँ
सोच कर यही कही तू तनहा तो नहीं



2.अभी अभी पैगाम आया है उनके आने का
ए-दिल अब तू बहाना न बना उनसे नज़रें चुराने का

Thursday, August 26, 2010

इलज़ाम


यूं इलज़ाम न लगाओ मेरे दामन पर
की हम गैरों की जुल्फों में सोते हैं

सारी रात भीगा हूँ अश्को की बारिश में
हम वो नहीं जो महफ़िल में आके चिल्लाते हैं

क्यों मेरे इश्क का ऐसे इम्तिहां लेती हो
देखे के हमको आँखों पे हाथ रख लेती हो

दरीचों के पीछे से ही सही देख तो मुझको
मेरी आँखों में आज भी तेरे सपने सजते हैं

Tuesday, June 29, 2010


जुल्को का अँधेरा करके
आँखों से मुझको पिला दे
मुझे तू शराबी बना दे
मुझे तू शराबी बना दे

आँखों से ऐसे झलके
मेरे होठों पे आ टपके
मुझे तू शराबी बना दे
मुझे तू शराबी बना दे

होठों को साकी बन जाने दे
आँखों का प्याला बह जाने दे
मुझे तू शराबी बना दे
मुझे तू शराबी बना दे

तेरे हाथ जोड़ता हूँ में
तेरे पाओ पकड़ता हूँ में
दिल में जो दर्द उठा है
उससे छुटकारा दिला दे
इतनी तू मुझको पिला दे
मुझे तू शराबी बना दे
मुझे तू शराबी बना दे

चिंगारी उठा दे सीने में
तेरा नाम रहे बस जिन्दा
बाकी सब कुछ जला दे
पर जुल्को का अँधेरा करके
आँखों से मुझको पिला दे
मुझे तू शराबी बना दे
मुझे तू शराबी बना दे

काँधे पे सर रखकर रोने दे
सारी रात तू मुझको पीने दे
मुझे तू शराबी बना दे
मुझे तू शराबी बना दे

Monday, June 14, 2010

निगाहें


खामोश निगाहें आज चुप्पी तोड़ ही बैठी
न जाने किस की याद में दरिया बहा बैठी

सुनकर कदमो की आहट उमड़ा ऐसा सैलाब
बेचैन निगाहें चेहरे का नकाब उड़ा बैठी

रात को निगाहें चाँद को देखने का गुनाह कर बैठी
कभी तो पास आयेगा इस इंतज़ार में नींदे गंवा बैठी

पलके झुका लेती हैं देखकर तुमको निगाहें
न जाने कब इजहारे मोहब्बत कर बैठी

खामोश निगाहें आज चुप्पी तोड़ ही बैठी
न जाने किस की याद में दरिया बहा बैठी

Sunday, June 13, 2010

तिनका


हर रोज गुजरता हूँ हसीनो की गली से
मेरी नज़र तेरे दर पर ही क्यों ठहर जाती है

एक रोज़ भी न सोचू जो तेरे बारे में
मेरी आंख क्यों भर आती है

अश्क बिखरते हैं जो ज़मी पर
तेरी तस्वीर ही क्यों नज़र आती हैं

जब भी तुम याद आते हो
मेरी तन्हाई न जाने क्यों रो जाती है

हाथों से छुपा लेते हैं चेहरा
आंख में तिनका होगा ये बात अब कही नहीं जाती

Monday, June 7, 2010

करीब


न जाने वो मेरे करीब कैसे आ गए
एक क्षण भी न लगा उनको दिल में समाने में

और भी तो थे ज़माने में
फिर मुझे ही क्यों खिंच लाये मैखाने में

इतना पिलाया हैं उन्होंने होठों से
की जाम झलकने लगा है इन आँखों से

खूबसूरत हो गया है मेरा हर एक पल
शायद इसलिए मज़ा आता है साकी तुझको पिलाने में

मोहब्बत ही बसी है हर जर्रे जर्रे में
दर्द ही पाया है हर बार उसे जलाने में

जिन झपकियों से दूर था तू "अंजान"
आज वही काम आ रही हैं तुझे सपने दिखाने में

Thursday, May 27, 2010

नाराजगी

नाराजगी

आज मैं जो उनसे नाराज़ हुआ
तो दिल उनकी अच्छाईया बताने लगा

जिस पल भी मैंने तुझे याद किया
तो दिल गिन गिन के मुझे बताने लगा

आंख बंद करके जो रोया
तो दिल तेरे ही सपने दिखाने लगा

तन्हाई में जो तुझको महसूस किया
तो दिल तुझसे मेरा रिश्ता बताने लगा

Tuesday, May 11, 2010

छुप छुप के


तेरे यादों से में दिल लगाता हूँ
आज कल में धीमे धीमे मुस्कराता हूँ

दुनिया वालों से में यह राज़ छुपाता हूँ
आज कल में छुप छुप के मुस्कराता हूँ

तू जो मिल जाए कही
मैं नज़रें चुराता हूँ

दुनिया वालो से में यह राज़ छुपाता हूँ
आज कल मैं छुप छुप के शर्माता हूँ

सोचता हूँ तेरे बारे में
लब्जो में हर बात सजा लेता हूँ

दुनिया वालों से यह राज़ छुपता हूँ
आज कल मैं छुप छुप के गुनगुनाता हूँ


जिक्र तेरा छिड जाए तो
मैं महफ़िल छोड़ जाता हूँ

दुनिया वालो से में यह राज़ छुपाता हूँ
आज कल मैं छुप छुप के रोता हूँ


तेरे यादों से में दिल लगाता हूँ
आज कल में धीमे धीमे मुस्कराता हूँ

Monday, April 5, 2010

उम्मीद


हर शाम चली जाती हो कल का वादा करके
लेकिन तुम बिन कैसे रात गुजार पाएंगे

मोहब्बत का दीया हर रोज़ जला जाती हो
इस उजाले में हम कैसे सो पायेंगे

छुके बदन जो आग लगा गयी हो
रात भर अश्क बहा के क्या उसको बुझा पाएंगे

थक गया हूँ बेदर्द शब को समझाते समझाते
अब और अपने अश्को की शबनम नहीं बना पायेंगे

बैठा हुआ है "अंजान" इस इंतज़ार में
कल से शायद उनके आँचल में सो पायेंगे

अस्तित्व


ऐसा क्या हो गया है इंसां को
की अपने ही सुख में डूब गया है

उसके इर्द गिर्द और भी है दुनिया
क्यों उसको भूल गया है

प्यार , मोहब्बत, रिश्ते ,नातो को
क्यों पैसे से तोल रहा है

अगर पैसे से ही सुख है
फिर हर मोड़ पे रास्ता क्यों भूल रहा है

भूल रहा है जब चिल्ला रहा होगा अपने दुख से
लोग पागल कह के आगे निकल जायेंगे

जल रहा होगा जब घर
लोग हाथ सेंक कर आगे बढ जायेंगे

जल गया जब तेरा पैसा
अब दुनिया को पहचान रहा है

राख बचेगी जब तन पर
अब अपना अस्तित्व दूंद रहा होगा

Tuesday, March 30, 2010

चुप्पी


कितने भी खामोश रखो इन लबो को
पर आवाज़ लगाती हैं तेरी आँखें
छुप के चाहे कितने भी रखो कदम
पर आहट सुना देती हैं तेरी साँसे

Monday, March 29, 2010

ख्याल


लिखता हूँ ग़ज़ल तेरे ही ख्याल से
कभी तो मिलेगी तू इस दिले बेकरार से

खो जाता हूँ दुनिया के मेले में इस ख्याल से
कभी तो दूंदेगी तेरी नज़र भीड़ को चीर के

लिखते हैं ख़त हर रोज़ तुझे इस ख्याल से
कभी तो पड़ेगी तू उनको इत्मीनान से

हर रोज़ आते हैं तेरे गली में इस ख्याल से
कभी तो देखेगी तू हमें घर के झरोके से

बहने नहीं देते अश्क इस ख्याल से
कभी तो झलकेगे यह अश्क तेरी आंख से

बस जिंदगी बना के बैठे हैं तुझको इस ख्याल से
कभी तो प्यार होगा तुझे इस "अंजान" से

Sunday, March 28, 2010

इंतज़ार


चेहरे से नकाब उठा के तो देख
की आज भी बैठा है कोई तेरे इंतज़ार में

बरसों गुजार दिए रोरो के तेरे प्यार में
की आज भी बैठा है कोई तेरे इंतज़ार में

सारी उम्र निकाल दी तन्हाई में
की आज भी बैठा है कोई तेरे इंतज़ार में

जहर भी पी गए अमृत समझकर तेरे इश्क के भ्रम में
की आज भी बैठा है कोई तेरे इंतज़ार में

एक नज़र घर की चौखट पर तो डाल
की आज भी बैठा है कोई तेरे इंतज़ार में

इतनी बेरुखी तो न कर तेरी एक झलक पाने को
की आज भी बैठा है कोई तेरे इंतज़ार में

बुझने नहीं दिया इश्क का चिराग कभी तो एहसास होगा
की आज भी बैठा है कोई तेरे इंतज़ार में

मर भी गए तो फिर जन्म ले के आयेंगे
की आज भी बैठा है कोई तेरे इंतज़ार में

Saturday, March 27, 2010

दर्पण


दर्पण

दर्पण में खुद को कई बार देखा
लेकिन तेरी आँखों में
जितना खूबसूरत देखा
दर्पण में कहाँ पाया

दूंदती थी तुझ को मैं
सपनो की दुनिया में
और जब चहरे से नकाब हटाया
तुझको अपनी ही आँखों में पाया

यादों में खोई थी तेरी
की तुझ को अपने सामने ही पाया
तेरी साँसों ने जो आँचल उड़ाया
शर्म से मैंने आँखों को झुकाया

भुला के अपने सारे गम
कदमो को तेरी तरफ बढाया
बाहों में तेरी आकर
खुद को जन्नत के करीब पाया

दर्पण में खुद को कई बार देखा
लेकिन तेरी आँखों में
जितना खूबसूरत देखा
दर्पण में कहाँ पाया

Wednesday, March 24, 2010

याद


मेरे बीते हुए दिन मुझे लोटा दो
खो गया है प्यार मेरा, मुझे याद दिला दो

क्यों बहते हैं अश्क मेरे
कोई तो इनको थमने का रास्ता बता दो

हर वक्त दिल से एक टीस ही उठती है
कोई तो मुझको मेरे इश्क का किस्सा सुना दो

रातो को मेरी चीख निकल पड़ती है
कोई तो आकर मेरा दरवाज़ा खटखटा दो

कमरे की खाली दीवारें मुझे डराती हैं
कोई तो उनकी तस्वीर दीवारों पर लगा दो

बिखर जाऊं उन के गम में इससे पहले
कोई तो आकार मुझे संभालो

कब से बैठा हूँ पलके बीछाये उनके इंतज़ार में
कोई तो मेरी फ़रियाद उन तक पहुंचा दो

Monday, March 22, 2010

दीवाना


खंजर बन गया है तेरा मुस्कराना
जख्मी हो गया है तेरा हर दीवाना

चाँद लगने लगा है तेरा चेहरा
शायर हो गया है तेरा हर दीवाना

आँखों से जो पिलाने लगे हो
शराबी हो गया है तेरा हर दीवाना

होठ तेरे जो कमाल से खिले हैं
भंवरा बन है तेरा हर दीवाना

सपनो में जो आने लगे हो
“सुनसान है गालियाँ” सो गया हिया तेरा हर दीवाना

खंजर बन गया है तेरा मुस्कराना
जख्मी हो गया है तेरा हर दीवाना

Wednesday, March 17, 2010

करीब


करीब न होती तो तुझको भूल जाता
यह तेरा इंतज़ार ही तो है
जो मुझको भूलने से रोक लेता है
वरना मैं तो कब का
आंशुयों के दरिया में बह गया होता

यह इंतज़ार भी क्या चीज़ है
जो उस हसीं चहरे के बिना जीना सीखा देता है
वरना मैं तो कब का
गम के सागर में सो गया होता

यह तेरा ख्बाब ही तो है
जो मेरे चेहरे पर मुस्कान लाता है
वरना मैं तो कब का
तनहा रहने के डर से सहम गया होता


यह तेरे साथ बीताया वक्त ही तो है
जो तेरी यादों को सजाया रखा है
वरना मैं तो कब का
पतझड़ का पेड़ बन गया होता

तेरी खुशबू ही तो है जो मुझे खींच लाई है
वरना यूं भीड़ में मैं वर्षों बाद भी पहचान न लेता
खुदा का शुक्र है जो तुमने भी मुझे पहचान लिया
वरना मैं तो कब का
यहाँ खड़े खड़े पत्थर बन गया होता

Monday, March 8, 2010

महबूब


हर रंग में सजाया है
अपने महबूब को
प्यार,इश्क,मोहब्बत
के लफ्जों से पिरोया है
जिंदगी की डोर में
अपने महबूब को
तन्हाई में उसकी बातें करके
हर वक्त अपने नजदीक पाया है
अपने महबूब को
आईने में देखू जो अपना चेहरा
उसका नज़र आता है
इस कदर महसूस करती हूँ
अपने महबूब को
देखती रहती हूँ हर रात फलक को
तरसती हूँ हर रात उसकी ही झलक को
क्योंकि मोहब्बत से भरा पाया है हर वक्त
अपने महबूब को
इस तरह बसा हैं निगाह में
की हर आँशु पह्चान लेता है
उतर चूका है मेरे दिल में, रोम रोम में
की हर आह पहचान लेता है
कैसे शिकायत करू में उसकी
एक पल में भी तो भुला नहीं सकती
अपने महबूब को
बस एक इल्तजा है मेरी
की मुझसे इतनी मोहब्बत न कर
मेरी रूह के करीब आ कर
और इतना तो न रोक मेरी सांसो को
की तेरी सांस की आदत पड़ जाए
मेरी जींदगी मुझे लोटा दे
इस तरह तो न मिटा मेरे वजूद को
दीवानगी की हद तक प्यार करती हूँ मैं
इसमें कोई शक नहीं
अपने महबूब को
अपने महबूब को

Friday, March 5, 2010

ऐ दिल तू फिकर न कर


ऐ दिल तू फिकर न कर


दिल की बात कहने को बुलाया है
उनको केंडल लाइट डीनर पर
आज मैं वोह सब कह दूँगा
ऐ दिल तू फिकर न कर

जो वोह नजरे चुरायेगी
चुपके से उसके हाथों पर अपना हाथ रख दूँगा
जो वोह पीछे करेगी धीमे से दबा दूँगा
पर आज मैं वोह सब कह दूँगा
ऐ दिल तू फिकर न कर

बस उसकी आँखों में ही देखूंगा
चाहे तेज हो जाये दिल की धडकन
इशारों में सब कह दूँगा
परआज मैं वोह सब कह दूँगा
ऐ दिल तू फिकर न कर

मैं कुछ पल चुप रहूँगा
जब खामोसी उसको सताएगी
तुम कुछ कहते क्यूँ नहीं कुछ ऐसे बोलेगी
चाहे लडखडा जाये मेरी जुबान
पर आज मैं वोह सब कह दूँगा
ऐ दिल तू फिकर न कर

Wednesday, February 24, 2010

दीवानगी

यह तेरी ही दीवानगी है की में पागल होता जा रहा हूँ
वरना रास्ते में आये पत्थरों को फूल न समझ लेता
जो चोट लगती तो तेरे लिए ग़ज़ल बन के निकलती
और उन अल्फाजो की गूंज दूर फलक तक जाती
जब तक तेरी आँखों से दो बूँद न झलक जाती

Tuesday, February 9, 2010

इतना प्यार करना है

इतना प्यार करना है

हर पल साथ रहे तू‍‌‍
इतना प्यार करना है
यू ही हंसती रहे तू
इतना प्यार करना है
आंख में आये न आंसू
इतना प्यार करना है

‌‍‌दिल मे तेरे अहसास हो मेरा ‌
की तेरी आंख का आँशु बन जाऊ
इतना प्यार करना है

कांटो पर खुद सोके
तुझे फूलो की सेज पर सुलाना है
इतना प्यार करना है

तू जब भी मुझको पुकारे
तेरा दर्द लेके खुशियाँ दे जाऊ
इतना प्यार करना है

चल दोनों चाँद पर चल के रहते है
सितारों से तेरी मांग मै भर दूं
इतना प्यार करना है

‍‌ हर पल साथ रहे तू‍‌‍
इतना प्यार करना है
इतना प्यार कर

Sunday, February 7, 2010

यही कही पर


कल कल जो करती है नदियाँ,
लगता है तू हंसती है यही कही पर
महकी है जो हवाएं
लगता है तू साँसे ले रही है यही कही पर
सनसन जो करते है पत्ते
लगता है तेरी पायल झनकी है यही कही पर


दौड़ जाता हूँ मैं सुनकर नदिया की कलकल
महकी हवाओं से आये मुझे याद तेरी हरपाल
सुन कर पत्तो की सनसन में ढूँढू तुझको हर जगह पर
पर तू मुझको कही नज़र न आये ज़मी पर


सोचता हूँ कही यह सपना तो नहीं था
शायद तेरा अहसास तो कही था
वरना मैं पागलो की तरह न भागतादिन रात तेरी याद में न जागता

Friday, February 5, 2010

जाते हो तो जाओ


जाते हो तो जाओ
खुश रहना
पर मुझे इतना याद तो न आओ

देखते थे जब भी तुमको हम
आँखें रहते थे मलते
देखा था शायद पहली बार
ज़मी पर किसी परी को चलते

जाते हो तो जाओ
खुश रहना
पर मुझे इतना याद तो न आओ

देखेते थे चाँद को जब भी
उसको चिडाया करते थे
तुझसे हसी है मेरा महबूब
कहकर उसको इतराया करते थे

जाते हो तो जाओ
खुश रहना
पर मुझे इतना याद तो न आओ

जुल्फों का तेरे चहरे पर पर्दा
देखा है हमने जुल्फों के झरोके से
तेरा पलके झुकाकर शरमाना
हमसे नज़रें चुराना

जाते हो तो जाओ
खुश रहना
पर मुझे इतना याद तो न आओ

दिल रोज़ पहुँच जाता है
गली के उस मोड़ पर
जहाँ तू गयी है
अपनी यादें छोड़ कर

जाते हो तो जाओ
खुश रहना
पर मुझे इतना याद तो न आओ

Monday, January 25, 2010

चाहत



तेरी चाहत को छुपाने लगा हूं


न जाने क्यूँ लोगो से नज़रें चुराने लगा हूं


तेरी हर बात को भुलाने लगा हूँ


न जाने कब तेरा जिक्र झिड जाए


मैं तुझको बदनाम होने से बचाने लगा हूँ




Sunday, January 24, 2010

यादें







दिन रात में तुमसे बातें करता हूं
सच कहता हूँ पर होश में नहीं रहता हूँ
दिल दिमाग और धड़कन में तुम समाई हो
हरपल ख्यालों में खोया रहता हूँ
फिर न जाने क्यों में होश में नहीं रहता हूँ

डरता हूँ अब तुमसे से बातें करने में
कुछ ऐसा न हो जाए जो तुम को चुभ जाए
बस इसी उल्फत में रहता हूँ
क्योंकि तुमसे जब बातें करता हूँ
होश में मैं नहीं रहता हूँ

शायद में रोक नहीं पाता खुद को
इतनी मोहब्बत करता हूँ
प्यार में तेरे बहक कर कुछ ऐसा न कह जाओ
इस उलझन में रहता हूँ
क्योंकि तुमसे जब बातें करता हूँ
होश में मैं नहीं रहता हूं


जब में अकेले रहता था
अक्सर तन्हाईओं में रहता था
जब से तुमसे मिला हूं
तेरे बारे में सोच सोच के तन्हाईओं से लड़ लेता हूं
लेकिन कही में रो न दूं इस बात से डरता हूं
क्योंकि तुमसे जब बातें करता हूँ
होश में मैं नहीं रहता हूँ


न जाने मैं तुमसे कितनी मोहब्बत करता हूं
दिन रात में तुमसे बातें करता हूं
सच कहता हूँ पर होश में नहीं रहता हूँ

न जाने में तुमसे कितनी मोहब्बत करता हूं
दिन रात में तुमसे बातें करता हूं
सच कहता हूँ पर होश में नहीं रहता हूँ


आज जो हद से गुजर गये


कल खुद को नहीं रोक पायेंगे


और एक बार जो शर्म का पर्दा हट गया


कल फिर तुझसे नजरें नहीं मिला पायेंगे







इजहारे मोहब्बत नहीं कर पाते वोह तो क्या हुआ
उनकी आँखें ही काफी है काफिला बुलाने को

तुमने आँखों से प्यार सिखाया
वरना हम कब के मिट गए होते
अपना तो रिश्ता गमो से था
मिलने का शौक तो तुमने जगाया

तुम्हारी आवाज़ से ही सुकून मिलता हैं
वरना मेरा जहाँ तो दर्द में डूबा था
वरसो का इंतज़ार आज खत्म हुआ
वरना हम तो कब से साहिल पर अकेले बैठे थे