Monday, June 14, 2010

निगाहें


खामोश निगाहें आज चुप्पी तोड़ ही बैठी
न जाने किस की याद में दरिया बहा बैठी

सुनकर कदमो की आहट उमड़ा ऐसा सैलाब
बेचैन निगाहें चेहरे का नकाब उड़ा बैठी

रात को निगाहें चाँद को देखने का गुनाह कर बैठी
कभी तो पास आयेगा इस इंतज़ार में नींदे गंवा बैठी

पलके झुका लेती हैं देखकर तुमको निगाहें
न जाने कब इजहारे मोहब्बत कर बैठी

खामोश निगाहें आज चुप्पी तोड़ ही बैठी
न जाने किस की याद में दरिया बहा बैठी