Wednesday, November 25, 2009

कुछ और वक्त ठहर जाते


अभी उनसे मिल के आया था

फ़िर मिलने को दिल मचल उठा है

कुछ और वक्त ठहर जाते ऐ जालिम

कहते कहते अश्क झलक उठा है




वीरान था यह दिल

तुमने फ़िर से रंग भर दिया है

मेरी जिंदगी का हर पल

तेरी यादों से फ़िर महक उठा है



सोचता था कभी

तनहा न रह जाऊ

लेकिन तुमने जिंदगी में आके

महफ़िल में जाना सिखा दिया है



आंखे बंद कर ली है मैंने
अब तो बस इंतज़ार है तेरे आने का

कुछ और वक्त रुक जाते ऐ जालिम

कहते कहते अश्क झलक उठा है

Sunday, November 22, 2009

ख़ामोशी



में तेरी गली से


खामोश गुजर जाऊंगा


बदनाम न हो जाए तू


इस डर से आवाज़ न लगाऊंगा


ख्वाब में जो तू आएगी


चुप चाप में तुझको देखूंगा


नींद न टूट जाए कही


इस डर से आवाज़ न लगाऊंगा


जो तू मिल जाए अकेले में


इधर उधर हो जाऊंगा


सर्फ़िरा न समझ ले तू


इस डर से आवाज़ न लगाऊंगा

जिस रोज़ देखेगी तू


कुछ वक्त ठहर जाऊंगा


आंशुओं से सब कह जाऊंगा


पर बदनाम न हो जाए तू


इस डर से आवाज़ न लगाऊँगा