Wednesday, March 11, 2015

बड़े लोग

दरियाओं को देखा है बनते खारा, समुन्दर में मिलकर
डर लगता है बड़े लोगो के शहर में आकर

इंतज़ार

हर रोज़ खिड़की पर आकर 
न जाने क्या ख्वाब बुन रही थी आँखें 
किसी में इंतज़ार में 
अरसा बीत गया पत्थर हो गयी आँखें
उसके इंतज़ार में 
घर के सामने वाली सड़क भी बिखर गयी
एक मुसाफिर के इंतज़ार में

दर्द

हंसा हंसा के तुमने तो बुरा हाल कर दिया 
सच बताओ, कितने छुपा रखे हैं दामन में दर्द भरे किस्से 

Monday, January 5, 2015

मैं खुशनसीब हूँ कितना यह पता तो नहीं

मैं खुशनसीब हूँ कितना यह पता तो नहीं
पर तेरा ख्याल आने से ही मुस्करा लेता हूँ
ये भी कुछ कम तो नहीं


बात है कुछ  सुनी सुनी सी
की वो भी अनजान नहीं मेरी मोहबत से
खुश हूँ  मैं  अब , पराया  नहीं तेरे लिए
ये भी कुछ कम तो नहीं


मैं खुशनसीब हूँ कितना यह पता तो नहीं

साँसे

जिस्म में मेरे  कहीं तो तेरी साँसे चलती है
वरना किसी की यादो में  दम नहीं की हमको  रुला सके