किसी और का गुस्सा उत्तरते देखा हैं
फूटपाथ पर उस गरीब को पिटते देखा है
सिसकियों में दर्द को छुपाते देखा है
फूटपाथ पर रोते उस गरीब को देखा है
पेट के लिए बचपन खोते देखा है
फूटपाथ पर सोते नन्ने हाथों की लकीरों को िमटते देखा है
बूढे माँ बाप के लिए खुद को बेचते देखा है
फूटपाथ पर लड़की की अस्मत को लूटते देखा है
कब तक यह सिलसिला चलेगा किसने देखा है
फूटपाथ पर हर चुनाब पर नेताओं को आश्वासन देते देखा है