Monday, December 3, 2012

याद

बहुत याद करता हूँ मै तुमको कैसे कहूं
डर लगता है कही तुम रो न पड़ो

तुम क्या गए शहर छोड़कर


तुम क्या गए  शहर छोड़कर
अब यहाँ चाँद का निकलना नहीं होता
चांदनी नहीं होती अब इस शहर में
अब किसी शक्स का रात को घर से निकलना नहीं होता
फूल तो खिलते हैं हर रोज़ इस शहर में
पर उनकी खुशबुओं से अब यह शहर नहीं महकता
पंछी निकलते हैं हर रोज़ अपने घोसलों से
पर उनकी चहचहाहट से अब यह शहर नहीं चहकता
रात भर रोता है शहर , तेरी याद में
हर सुबह ही हवा में मैंने नमी को देखा है
ऐ मेरे दोस्त तुम क्या गए मुझे छोड़कर
मैंने इन आखों को पहली बार किसी का इंतज़ार करते देखा है