Monday, March 29, 2010

ख्याल


लिखता हूँ ग़ज़ल तेरे ही ख्याल से
कभी तो मिलेगी तू इस दिले बेकरार से

खो जाता हूँ दुनिया के मेले में इस ख्याल से
कभी तो दूंदेगी तेरी नज़र भीड़ को चीर के

लिखते हैं ख़त हर रोज़ तुझे इस ख्याल से
कभी तो पड़ेगी तू उनको इत्मीनान से

हर रोज़ आते हैं तेरे गली में इस ख्याल से
कभी तो देखेगी तू हमें घर के झरोके से

बहने नहीं देते अश्क इस ख्याल से
कभी तो झलकेगे यह अश्क तेरी आंख से

बस जिंदगी बना के बैठे हैं तुझको इस ख्याल से
कभी तो प्यार होगा तुझे इस "अंजान" से