Sunday, October 11, 2009

बात जब की हैं

बूंदों ने था तुझको भिगोया
रोम रोम था तेरा खोया
बात जब की है
आंखों ने की थी शरारत
अदायों में थी हरारत
बात जब की है
पास था मैंने तुझको बुलाया
पलकों को था तुने झुकाया
बात जब की है
कुछ कहते कहते होठ चुप हो गए
ना जाने किस शर्म हया में तुम छुप गए थे
बात जब की है
आज फिर वोह मौसम आया है
जो ना में कह पाया था
बात जब की है
ना तुम कह पाये थे
क्या तुमने दिल में छुपाया था
बात जब की है
जब भी हम तनहा थे
आज भी तनहा है
सच आज भी है