Thursday, August 26, 2010

इलज़ाम


यूं इलज़ाम न लगाओ मेरे दामन पर
की हम गैरों की जुल्फों में सोते हैं

सारी रात भीगा हूँ अश्को की बारिश में
हम वो नहीं जो महफ़िल में आके चिल्लाते हैं

क्यों मेरे इश्क का ऐसे इम्तिहां लेती हो
देखे के हमको आँखों पे हाथ रख लेती हो

दरीचों के पीछे से ही सही देख तो मुझको
मेरी आँखों में आज भी तेरे सपने सजते हैं