Wednesday, March 9, 2011

देखी है लोगो में तेरे हुस्न की तलब


देखी है लोगो में तेरे हुस्न की तलब
शहर में आते ही रुख, तेरी गली की तरफ होगा

डरता हूँ होश आने पर क्या होगा
तेरे शहर का वीरान मैकदा चहक रहा होगा

हर कोई साकी से कह रहा होगा
कितनी रहम दिल है तू जरूर तेरे सीने में कभी दर्द रहा होगा

तू ही बता मेरे मर्ज़ का इलाज़ क्या होगा
क्योंकि सुबह होते ही फिर रुख उसकी गली की तरफ होगा

हर शाम जख्म लेके तेरे पास लौटते हैं
लेकिन कब तक तेरे आँचल में सर रख कर रोना होगा

भूल जा अंजान साकी का रहम ,उस गली का भ्रम
तोड़ दे ये सीलसीला हर जख्म,दर्द को वक्त से भरना होगा