Sunday, February 7, 2010

यही कही पर


कल कल जो करती है नदियाँ,
लगता है तू हंसती है यही कही पर
महकी है जो हवाएं
लगता है तू साँसे ले रही है यही कही पर
सनसन जो करते है पत्ते
लगता है तेरी पायल झनकी है यही कही पर


दौड़ जाता हूँ मैं सुनकर नदिया की कलकल
महकी हवाओं से आये मुझे याद तेरी हरपाल
सुन कर पत्तो की सनसन में ढूँढू तुझको हर जगह पर
पर तू मुझको कही नज़र न आये ज़मी पर


सोचता हूँ कही यह सपना तो नहीं था
शायद तेरा अहसास तो कही था
वरना मैं पागलो की तरह न भागतादिन रात तेरी याद में न जागता