Monday, March 8, 2010

महबूब


हर रंग में सजाया है
अपने महबूब को
प्यार,इश्क,मोहब्बत
के लफ्जों से पिरोया है
जिंदगी की डोर में
अपने महबूब को
तन्हाई में उसकी बातें करके
हर वक्त अपने नजदीक पाया है
अपने महबूब को
आईने में देखू जो अपना चेहरा
उसका नज़र आता है
इस कदर महसूस करती हूँ
अपने महबूब को
देखती रहती हूँ हर रात फलक को
तरसती हूँ हर रात उसकी ही झलक को
क्योंकि मोहब्बत से भरा पाया है हर वक्त
अपने महबूब को
इस तरह बसा हैं निगाह में
की हर आँशु पह्चान लेता है
उतर चूका है मेरे दिल में, रोम रोम में
की हर आह पहचान लेता है
कैसे शिकायत करू में उसकी
एक पल में भी तो भुला नहीं सकती
अपने महबूब को
बस एक इल्तजा है मेरी
की मुझसे इतनी मोहब्बत न कर
मेरी रूह के करीब आ कर
और इतना तो न रोक मेरी सांसो को
की तेरी सांस की आदत पड़ जाए
मेरी जींदगी मुझे लोटा दे
इस तरह तो न मिटा मेरे वजूद को
दीवानगी की हद तक प्यार करती हूँ मैं
इसमें कोई शक नहीं
अपने महबूब को
अपने महबूब को

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