Tuesday, April 14, 2020

अधिकार

अंधकार को चीरकर
मै मसाल जलाऊंगा
साम दाम दंड भेद नीति से
मै अधिकार दिलाऊंगा
नही हो तुम भाग्यविधाता
मै तुमको जतलाऊंगा
तिलक लगाया है माथे पर
मै ही विजय पथ  सजाऊंगा
हर हर महादेव का नारा लगाकर
मै ही तांडव नृत्य दिखाऊंगा

गबरू

हर रोज़ चला आता है
गबरू बालकनी में बहाने जिम के
कुछ नशा सा हो गया है
मोहल्ले की भाभियों को कसम से
रोक लो इसको गजब हो जाएगा
भाभियों का सब्र टूट गया
तो समझो गदर छा जाएगा

लॉक डाउन

वो सब फ़नाह हो गए
जो बीवी की तस्वीर पर्स में लेकर घूमते थे
और हर बार पर्स निकालने पर
चूमते थे
आज बर्तन मांज रहे हैं
जानू  के एक इशारे पर
-अंजान

कोरोना

कोरोना

कभी सुनसान रास्तों को देखकर डर जाते थे
आज इंसान दिख जाए तो डर जाते हैं
हर जगह हर शक्स में कोरोना नज़र आता है
ऐसा कौन सा नगर है जहां बस
अमन नज़र आता है
नही देखना अगर दहशत भरा  मंजर
कुछ वक्त गुजार लो ऐ मेरे दोस्त
घर की दीवारों के अंदर
- अंजान