Tuesday, March 30, 2010

चुप्पी


कितने भी खामोश रखो इन लबो को
पर आवाज़ लगाती हैं तेरी आँखें
छुप के चाहे कितने भी रखो कदम
पर आहट सुना देती हैं तेरी साँसे