Tuesday, June 11, 2013

बालिका बधू

कली थी मैं फूल बनने से पहले क्यों मुरझा दिया
माँ मुझे क्यों बालिका बधू बना दिया 

क्या में आँगन में खेलती अच्छी नहीं लगती थी 
क्यों अपनी चिरिया को आँगन से उड़ा दिया 

माँ हम तुम तो संगी सहेली थे, सुख दुःख में साथी थे
एक ही क्षण में कैसे मुझे पराया बना दिया

नए घर में न जिद कर सकती हूँ , न हँस सकती हूँ , न खेल सकती हूँ
क्यों मेरा बचपन छीन लिया

जब मुझको पढना था , कुछ आगे बढना था
बालिका बधू बनाकर क्यों मेरे सपनो पर विराम लगा दिया

- अंजान
ब्लॉग: mycreation-ajnabi.blogspot.com

Thursday, June 6, 2013

संबेदना

माँ नहीं तो माँ के प्यार को रोता है
रक्षाबंदन पर बहिन के प्यार को तरसता है
इतनी अनमोल  हूँ अगर मैं
फिर क्यों मुझे जन्म लेने से रोकते हो
मुझे भी इस दुनिया मै कदम रख लेने दो

मुझको भी उड़ान भर लेने दो
कुछ दूर उड़ लेने दो
दो कदम मुझे भी बढ लेने दो
मुझे भी पढ लेने दो

कब तक भीड़ मै सहारा देखूंगी
मुझे भी आत्मनिर्भर बन लेने दो
मैं खुद को संभल सकती हूँ
एक बार मुझे घर से बहार निकलने दो

                             -अंजान