Monday, July 16, 2012

मोहब्बत-ए-आशिक


तुम क्या गए हमको छोडकर
जीना मुहाल हो गया
दर्द –ए – दिल की दवा बनकर
लोगो की नसीहत आने  लगी
क्या पाया तुने मोहब्बत-ए-आशिक बनकर 
आपको हमसे शिकायत है 
की दर्द -ए-मोहब्बत हम नहीं जानते 
रूठने पर आपके हम 
मनाना नहीं जानते

संवर  जाएगी जिंदगी 
सिर्फ जिस्म के जिस्म से मिलने से 
यह जरूरी तो नहीं

फिर आँखों में मोहब्बत की नमी होगी 
बीते हुए मीठे लम्हों को 
तिनका तिनका करके जोडिए तो सही

फिर वही प्यार होगा .
फिर वही अहसास होगा 
एक रोज़ फिर तन्हाई  में
आँखों में आँखें  डाल कर तो देखिये 

नाराज़गी भरी आंधियां तो हर रोज़ आएँगी
मोहब्बत को परखने के लिए 
तनहा न समझना  कभी खुद को 
आंधियां खुद ब खुद लोट जाएँगी 
रूह के कांपने  से पहले