Monday, November 13, 2017

मैं तो दर्द की बात कर रहा था
ना जाने लोग कहाँ से मोहब्बत ले आये
खूब चिल्लाये मेरी गली में आकर
वो मर्द के सारे बच्चे


दरार

दरार न पड़े रिश्तो में
इसलिए  मचाते आता हूँ 
वर्ण मुझे भी नज़रे बचाकर 
दबे पांव घर में घुसना आता है
                             अंजान 
                                       एक स्पर्श 
तन्हा  हैं अगर
तो घर में जले लगे रहने दीजिये 
मुस्कराने की वजह मिल जाएगी 
घर आवाद रहे तो 
                             अंजान 
                                       एक स्पर्श 

Thursday, July 27, 2017

एनिवर्सरी स्पेशल

साथ फेरों का कितना मधुर अहसास
देख कर तुमको दिल धड़कता है ऐसे
जैसे मिले रहे हो पहली बार
जबकि तुम रहती हो हर पल मेरे पास
तुमसे से मोहब्बत कितनी भी कर ले
कम लगता है हमको तो ये जीवन
तुम ही हो आँखों में मेरी
खुशी और गम पहचान लेती हो
जान ये बताओ इतनी
मोहब्बत तुम कैसे कर लेती 

Sunday, February 26, 2017

चेहरा

मजे मजे में पी ली थी एक बार
चेहरा नज़र आ गया था  हर एक शक्श का

सरहद का वीर

सरहद पर खड़ा है वीर
पता नहीं जिसे वक़्त का
ना जाने कब बह जाए
समंदर रक्त का
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
ध्यान रखे हुआ है हर एक शक्श का
जब तक खड़ा है वीर मेरे मुल्क का

Monday, January 23, 2017

रोशनी

गुलिस्तां काँटों से इतना भर गया है कि
मोहब्बत का हिसाब मांगने लगे हैं लोग
रोशनी से इस कदर डरने लगें हैं कि
अँधेरे में भी मुँह छुपा के निकलने लगे हैं लोग

Wednesday, January 18, 2017

हिम्मत

पक्षियों से कह दो उड़ना छोड़ दो
हिम्मत है तो उनका हौसला तोड़ दो
लोग कहते है उम्मीद छोड़ दो
हिम्मत है तो सबका भरोसा तोड़ दो
आरक्षण की जंजीर पकड़ना छोड़ दो
हिम्मत है तो तुम जातपात तोड़ दो
खुले आसमान के नीचे जीना छोड़ दो
हिम्मत है तो अपना आशियाना तोड़ दो
-अंजान

Friday, January 6, 2017

जिंदगी

उलझा हुआ हूँ
ए जिंदगी
तुझे सुलझाने में
लोग कहते हैं
उम्र बीत जाती है
तुझे समझने में
कौन अपना कौन पराया
कौन दोस्त कौन दुश्मन
ये कैसी पहेली है
दूर से देखो जैसे रंगोली है
पास से देखो सबकी चादर मैली है
समझ जाऊंगा तुझे उम्र के
किसी पड़ाब पर
अभी मैने हार कहाँ मानी है
उलझा हुआ हूँ
ए जिंदगी
तुझे सुलझाने में
लोग कहते हैं
उम्र बीत जाती है
तुझे समझने में
जहर पिलाने वाले भी हैं बहुत तुझे
मोहब्बत से तू पिघल जाती है
ये बात क्यों भूल जाती है
समझ जाऊंगा तुझे उम्र के
किसी पड़ाब पर
अभी मैने हार कहाँ मानी है
-अंजान

आश


बांह फैलाये खड़ा हूँ
जैसी ही मिलेगी मोहब्बत
उसे भींच लूंगा
पल भर में उसे अपने अंदर
खींच लूंगा...