Monday, October 3, 2016

पतझर

 पतझर में नंगे हो गए थे जो पेड़
सूख कर गिर गए बारिश के इंतज़ार में

शमायें

ना जाने कितनी शमायें जल उठी 
परवाने देखकर
इन्हे भी तड़पा तड़पा कर
जान लेने में मज़ा आता है

Friday, September 2, 2016

आवाज़

मोहब्बत तो खामोशियों से भरी होती है
आवाज़ तो उसमें बस दिल टूटने की होती है

Thursday, September 1, 2016

गुफ्तगू

फिर तन्हाइयों में जीना चाहता हूँ,
ऐ जिंदगी तेरा क्या इरादा है।
आ गुफ्तगू कर ले,
इन खामोश दीवारों से किनारा कर ले।
मोहब्बत में क्या क्या कर गुजरे,
उनका हिसाब कर ले,
कितना तनहा रोया,कितना उनके आँचल में।
आ खुले आसमां के नीचे,
मोहब्बत और तन्हाई को साथ ले चले।
किसका पल्ला भारी है ,
पूछेंगे उनसे बारी बारी