Tuesday, March 30, 2010

चुप्पी


कितने भी खामोश रखो इन लबो को
पर आवाज़ लगाती हैं तेरी आँखें
छुप के चाहे कितने भी रखो कदम
पर आहट सुना देती हैं तेरी साँसे

Monday, March 29, 2010

ख्याल


लिखता हूँ ग़ज़ल तेरे ही ख्याल से
कभी तो मिलेगी तू इस दिले बेकरार से

खो जाता हूँ दुनिया के मेले में इस ख्याल से
कभी तो दूंदेगी तेरी नज़र भीड़ को चीर के

लिखते हैं ख़त हर रोज़ तुझे इस ख्याल से
कभी तो पड़ेगी तू उनको इत्मीनान से

हर रोज़ आते हैं तेरे गली में इस ख्याल से
कभी तो देखेगी तू हमें घर के झरोके से

बहने नहीं देते अश्क इस ख्याल से
कभी तो झलकेगे यह अश्क तेरी आंख से

बस जिंदगी बना के बैठे हैं तुझको इस ख्याल से
कभी तो प्यार होगा तुझे इस "अंजान" से

Sunday, March 28, 2010

इंतज़ार


चेहरे से नकाब उठा के तो देख
की आज भी बैठा है कोई तेरे इंतज़ार में

बरसों गुजार दिए रोरो के तेरे प्यार में
की आज भी बैठा है कोई तेरे इंतज़ार में

सारी उम्र निकाल दी तन्हाई में
की आज भी बैठा है कोई तेरे इंतज़ार में

जहर भी पी गए अमृत समझकर तेरे इश्क के भ्रम में
की आज भी बैठा है कोई तेरे इंतज़ार में

एक नज़र घर की चौखट पर तो डाल
की आज भी बैठा है कोई तेरे इंतज़ार में

इतनी बेरुखी तो न कर तेरी एक झलक पाने को
की आज भी बैठा है कोई तेरे इंतज़ार में

बुझने नहीं दिया इश्क का चिराग कभी तो एहसास होगा
की आज भी बैठा है कोई तेरे इंतज़ार में

मर भी गए तो फिर जन्म ले के आयेंगे
की आज भी बैठा है कोई तेरे इंतज़ार में

Saturday, March 27, 2010

दर्पण


दर्पण

दर्पण में खुद को कई बार देखा
लेकिन तेरी आँखों में
जितना खूबसूरत देखा
दर्पण में कहाँ पाया

दूंदती थी तुझ को मैं
सपनो की दुनिया में
और जब चहरे से नकाब हटाया
तुझको अपनी ही आँखों में पाया

यादों में खोई थी तेरी
की तुझ को अपने सामने ही पाया
तेरी साँसों ने जो आँचल उड़ाया
शर्म से मैंने आँखों को झुकाया

भुला के अपने सारे गम
कदमो को तेरी तरफ बढाया
बाहों में तेरी आकर
खुद को जन्नत के करीब पाया

दर्पण में खुद को कई बार देखा
लेकिन तेरी आँखों में
जितना खूबसूरत देखा
दर्पण में कहाँ पाया

Wednesday, March 24, 2010

याद


मेरे बीते हुए दिन मुझे लोटा दो
खो गया है प्यार मेरा, मुझे याद दिला दो

क्यों बहते हैं अश्क मेरे
कोई तो इनको थमने का रास्ता बता दो

हर वक्त दिल से एक टीस ही उठती है
कोई तो मुझको मेरे इश्क का किस्सा सुना दो

रातो को मेरी चीख निकल पड़ती है
कोई तो आकर मेरा दरवाज़ा खटखटा दो

कमरे की खाली दीवारें मुझे डराती हैं
कोई तो उनकी तस्वीर दीवारों पर लगा दो

बिखर जाऊं उन के गम में इससे पहले
कोई तो आकार मुझे संभालो

कब से बैठा हूँ पलके बीछाये उनके इंतज़ार में
कोई तो मेरी फ़रियाद उन तक पहुंचा दो

Monday, March 22, 2010

दीवाना


खंजर बन गया है तेरा मुस्कराना
जख्मी हो गया है तेरा हर दीवाना

चाँद लगने लगा है तेरा चेहरा
शायर हो गया है तेरा हर दीवाना

आँखों से जो पिलाने लगे हो
शराबी हो गया है तेरा हर दीवाना

होठ तेरे जो कमाल से खिले हैं
भंवरा बन है तेरा हर दीवाना

सपनो में जो आने लगे हो
“सुनसान है गालियाँ” सो गया हिया तेरा हर दीवाना

खंजर बन गया है तेरा मुस्कराना
जख्मी हो गया है तेरा हर दीवाना

Wednesday, March 17, 2010

करीब


करीब न होती तो तुझको भूल जाता
यह तेरा इंतज़ार ही तो है
जो मुझको भूलने से रोक लेता है
वरना मैं तो कब का
आंशुयों के दरिया में बह गया होता

यह इंतज़ार भी क्या चीज़ है
जो उस हसीं चहरे के बिना जीना सीखा देता है
वरना मैं तो कब का
गम के सागर में सो गया होता

यह तेरा ख्बाब ही तो है
जो मेरे चेहरे पर मुस्कान लाता है
वरना मैं तो कब का
तनहा रहने के डर से सहम गया होता


यह तेरे साथ बीताया वक्त ही तो है
जो तेरी यादों को सजाया रखा है
वरना मैं तो कब का
पतझड़ का पेड़ बन गया होता

तेरी खुशबू ही तो है जो मुझे खींच लाई है
वरना यूं भीड़ में मैं वर्षों बाद भी पहचान न लेता
खुदा का शुक्र है जो तुमने भी मुझे पहचान लिया
वरना मैं तो कब का
यहाँ खड़े खड़े पत्थर बन गया होता

Monday, March 8, 2010

महबूब


हर रंग में सजाया है
अपने महबूब को
प्यार,इश्क,मोहब्बत
के लफ्जों से पिरोया है
जिंदगी की डोर में
अपने महबूब को
तन्हाई में उसकी बातें करके
हर वक्त अपने नजदीक पाया है
अपने महबूब को
आईने में देखू जो अपना चेहरा
उसका नज़र आता है
इस कदर महसूस करती हूँ
अपने महबूब को
देखती रहती हूँ हर रात फलक को
तरसती हूँ हर रात उसकी ही झलक को
क्योंकि मोहब्बत से भरा पाया है हर वक्त
अपने महबूब को
इस तरह बसा हैं निगाह में
की हर आँशु पह्चान लेता है
उतर चूका है मेरे दिल में, रोम रोम में
की हर आह पहचान लेता है
कैसे शिकायत करू में उसकी
एक पल में भी तो भुला नहीं सकती
अपने महबूब को
बस एक इल्तजा है मेरी
की मुझसे इतनी मोहब्बत न कर
मेरी रूह के करीब आ कर
और इतना तो न रोक मेरी सांसो को
की तेरी सांस की आदत पड़ जाए
मेरी जींदगी मुझे लोटा दे
इस तरह तो न मिटा मेरे वजूद को
दीवानगी की हद तक प्यार करती हूँ मैं
इसमें कोई शक नहीं
अपने महबूब को
अपने महबूब को

Friday, March 5, 2010

ऐ दिल तू फिकर न कर


ऐ दिल तू फिकर न कर


दिल की बात कहने को बुलाया है
उनको केंडल लाइट डीनर पर
आज मैं वोह सब कह दूँगा
ऐ दिल तू फिकर न कर

जो वोह नजरे चुरायेगी
चुपके से उसके हाथों पर अपना हाथ रख दूँगा
जो वोह पीछे करेगी धीमे से दबा दूँगा
पर आज मैं वोह सब कह दूँगा
ऐ दिल तू फिकर न कर

बस उसकी आँखों में ही देखूंगा
चाहे तेज हो जाये दिल की धडकन
इशारों में सब कह दूँगा
परआज मैं वोह सब कह दूँगा
ऐ दिल तू फिकर न कर

मैं कुछ पल चुप रहूँगा
जब खामोसी उसको सताएगी
तुम कुछ कहते क्यूँ नहीं कुछ ऐसे बोलेगी
चाहे लडखडा जाये मेरी जुबान
पर आज मैं वोह सब कह दूँगा
ऐ दिल तू फिकर न कर