Monday, June 7, 2010

करीब


न जाने वो मेरे करीब कैसे आ गए
एक क्षण भी न लगा उनको दिल में समाने में

और भी तो थे ज़माने में
फिर मुझे ही क्यों खिंच लाये मैखाने में

इतना पिलाया हैं उन्होंने होठों से
की जाम झलकने लगा है इन आँखों से

खूबसूरत हो गया है मेरा हर एक पल
शायद इसलिए मज़ा आता है साकी तुझको पिलाने में

मोहब्बत ही बसी है हर जर्रे जर्रे में
दर्द ही पाया है हर बार उसे जलाने में

जिन झपकियों से दूर था तू "अंजान"
आज वही काम आ रही हैं तुझे सपने दिखाने में

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