Saturday, September 8, 2018

धुआं

माना कि रोक नही सकते थे
उड़ते हुए धुंए को तुम
पर ये बताओ क्यों
आग बुझाने की हिम्मत नही जुटा पाए तुम
अंजान "एक स्पर्श"

दीप

अंधेरे में निकल जा
कहीं न कहीं जलता दीप मिल ही जायेगा
हौसले बुलंद कर
अंधेरे को चीरकर रोशनी बिखेरकर
प्रकाश तू ले ही आएगा
अंधेरे में निकल जा
कहीं न कहीं जलता दीप मिल ही जायेगा
मंजिल तू पा ही जायेगा
भूत और भविष्य को छोडक़र
चल वर्तमान को पकड़कर
वक़्त भी हार मान जाएगा
अंधेरे में निकल जा
कहीं न कहीं जलता दीप मिल ही जायेगा
- कवि अंजान "एक स्पर्श"