Wednesday, March 17, 2010

करीब


करीब न होती तो तुझको भूल जाता
यह तेरा इंतज़ार ही तो है
जो मुझको भूलने से रोक लेता है
वरना मैं तो कब का
आंशुयों के दरिया में बह गया होता

यह इंतज़ार भी क्या चीज़ है
जो उस हसीं चहरे के बिना जीना सीखा देता है
वरना मैं तो कब का
गम के सागर में सो गया होता

यह तेरा ख्बाब ही तो है
जो मेरे चेहरे पर मुस्कान लाता है
वरना मैं तो कब का
तनहा रहने के डर से सहम गया होता


यह तेरे साथ बीताया वक्त ही तो है
जो तेरी यादों को सजाया रखा है
वरना मैं तो कब का
पतझड़ का पेड़ बन गया होता

तेरी खुशबू ही तो है जो मुझे खींच लाई है
वरना यूं भीड़ में मैं वर्षों बाद भी पहचान न लेता
खुदा का शुक्र है जो तुमने भी मुझे पहचान लिया
वरना मैं तो कब का
यहाँ खड़े खड़े पत्थर बन गया होता

No comments: