Monday, July 29, 2013

चिराग-ऐ-मोहब्बत

चिराग-ऐ-मोहब्बत तो जलते हैं हर रोज़ 
जाँ दे दे कोई , वो परवाना नहीं दिखता

सैलाब आ जाए सुनकर मोहब्बत के ढाई आखर 
वो प्यार, अब आँखों में नहीं दिखता 

दर्द - ऐ- मोहब्बत को जो ख़ुशी से पी गया 
ऐसा कोई राँझा, मजनू, अब नहीं दिखता 

तन्हाई बांटा करते थे नदी के तट पर बैठकर 
वो हंसो का जोड़ा अब नहीं दिखता

हर बार साहिल को चूम कर, दम तोड़ देती है
उस लहर के दर्द को , धडकनों में समेटता कोई नहीं दिखता

चिराग-ऐ-मोहब्बत तो जलते हैं हर रोज़
जाँ दे दे कोई , वो परवाना नहीं दिखता
-अंजान

नारी

मैं दिल से निकली रागिनी हूँ,                                         

मैं ही प्यार की संगनी हूँ ।

मैं ममता की मूरत हूँ ,
मैं ही घर की सूरत हूँ ।

मैं चूड़ियों की खनखन हूँ ,
मैं ही पायलों की छनछन हूँ ।

मैं कवि की कविता हूँ ,
मैं ही बहती सरिता हूँ ।

मैं सहनशीलता हूँ ,
मैं ही समाज की विनम्रता हूँ ।

मैं शक्ति , मैं सिंह धारिणी हूँ
मैं ही जग की जननी हूँ