Sunday, January 24, 2010

यादें







दिन रात में तुमसे बातें करता हूं
सच कहता हूँ पर होश में नहीं रहता हूँ
दिल दिमाग और धड़कन में तुम समाई हो
हरपल ख्यालों में खोया रहता हूँ
फिर न जाने क्यों में होश में नहीं रहता हूँ

डरता हूँ अब तुमसे से बातें करने में
कुछ ऐसा न हो जाए जो तुम को चुभ जाए
बस इसी उल्फत में रहता हूँ
क्योंकि तुमसे जब बातें करता हूँ
होश में मैं नहीं रहता हूँ

शायद में रोक नहीं पाता खुद को
इतनी मोहब्बत करता हूँ
प्यार में तेरे बहक कर कुछ ऐसा न कह जाओ
इस उलझन में रहता हूँ
क्योंकि तुमसे जब बातें करता हूँ
होश में मैं नहीं रहता हूं


जब में अकेले रहता था
अक्सर तन्हाईओं में रहता था
जब से तुमसे मिला हूं
तेरे बारे में सोच सोच के तन्हाईओं से लड़ लेता हूं
लेकिन कही में रो न दूं इस बात से डरता हूं
क्योंकि तुमसे जब बातें करता हूँ
होश में मैं नहीं रहता हूँ


न जाने मैं तुमसे कितनी मोहब्बत करता हूं
दिन रात में तुमसे बातें करता हूं
सच कहता हूँ पर होश में नहीं रहता हूँ

न जाने में तुमसे कितनी मोहब्बत करता हूं
दिन रात में तुमसे बातें करता हूं
सच कहता हूँ पर होश में नहीं रहता हूँ


आज जो हद से गुजर गये


कल खुद को नहीं रोक पायेंगे


और एक बार जो शर्म का पर्दा हट गया


कल फिर तुझसे नजरें नहीं मिला पायेंगे







इजहारे मोहब्बत नहीं कर पाते वोह तो क्या हुआ
उनकी आँखें ही काफी है काफिला बुलाने को

तुमने आँखों से प्यार सिखाया
वरना हम कब के मिट गए होते
अपना तो रिश्ता गमो से था
मिलने का शौक तो तुमने जगाया

तुम्हारी आवाज़ से ही सुकून मिलता हैं
वरना मेरा जहाँ तो दर्द में डूबा था
वरसो का इंतज़ार आज खत्म हुआ
वरना हम तो कब से साहिल पर अकेले बैठे थे