लिखना चाहता था प्रेम कहानी
पर दर्द बयाँ कर बैठा
बरसानी थी बादलों से बरसात
पर अश्क बहा बैठा
उसकी आंखों में एक चमक नज़र आती थी
जो उसकी खफा में वफ़ा दिखाती थी
कातिल हँसी उसकी फूल खिलाया करती थी
बस इसी तरह नज़रो में बसाया करती थी
हर रोज़ बेवफाई का जख्म दिया करती थी
शाम को जुल्फों के साये में मरहम लगाती थी
मेरी आँखों को बस वफ़ा नज़र आती थी
पर धोखा देती रही हर दफा तुझको ऐ अंजान
आलम यह है अब जाम भी पिया नही जाता
और उसके बिना जीया भी नही जाता
फर्क नज़र आता है उसके प्यार में
फ़िर क्यों बैठा अनजान उसके इंतज़ार में