Wednesday, March 11, 2015

इंतज़ार

हर रोज़ खिड़की पर आकर 
न जाने क्या ख्वाब बुन रही थी आँखें 
किसी में इंतज़ार में 
अरसा बीत गया पत्थर हो गयी आँखें
उसके इंतज़ार में 
घर के सामने वाली सड़क भी बिखर गयी
एक मुसाफिर के इंतज़ार में

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