क्या दीवारों को कभी चीखते हुए देखा है
खामोश होकर बंद कमरे में बैठ कर तो देखिये
क्या रास्तो तो कभी चलते हुए देखा है
किसी की तलाश में घर से निकल कर तो देखिये
क्या अँधेरे को कभी डरते हुए देखा है
एक चिंगारी जला कर तो देखिये
क्या उदासी को कभी सहमते हुए देखा है
होंठो पर तबस्सुम ला कर तो देखिये
क्या खामोश निगाहों में सैलाब आते हुए देखा है
बिछड़े हुए को कभी मिला कर तो देखिये
खामोश होकर बंद कमरे में बैठ कर तो देखिये
क्या रास्तो तो कभी चलते हुए देखा है
किसी की तलाश में घर से निकल कर तो देखिये
क्या अँधेरे को कभी डरते हुए देखा है
एक चिंगारी जला कर तो देखिये
क्या उदासी को कभी सहमते हुए देखा है
होंठो पर तबस्सुम ला कर तो देखिये
क्या खामोश निगाहों में सैलाब आते हुए देखा है
बिछड़े हुए को कभी मिला कर तो देखिये
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