किसी और का गुस्सा उत्तरते देखा हैं
फूटपाथ पर उस गरीब को पिटते देखा है
सिसकियों में दर्द को छुपाते देखा है
फूटपाथ पर रोते उस गरीब को देखा है
पेट के लिए बचपन खोते देखा है
फूटपाथ पर सोते नन्ने हाथों की लकीरों को िमटते देखा है
बूढे माँ बाप के लिए खुद को बेचते देखा है
फूटपाथ पर लड़की की अस्मत को लूटते देखा है
कब तक यह सिलसिला चलेगा किसने देखा है
फूटपाथ पर हर चुनाब पर नेताओं को आश्वासन देते देखा है
Thursday, March 17, 2011
Wednesday, March 9, 2011
देखी है लोगो में तेरे हुस्न की तलब
देखी है लोगो में तेरे हुस्न की तलब
शहर में आते ही रुख, तेरी गली की तरफ होगा
डरता हूँ होश आने पर क्या होगा
तेरे शहर का वीरान मैकदा चहक रहा होगा
हर कोई साकी से कह रहा होगा
कितनी रहम दिल है तू जरूर तेरे सीने में कभी दर्द रहा होगा
तू ही बता मेरे मर्ज़ का इलाज़ क्या होगा
क्योंकि सुबह होते ही फिर रुख उसकी गली की तरफ होगा
हर शाम जख्म लेके तेरे पास लौटते हैं
लेकिन कब तक तेरे आँचल में सर रख कर रोना होगा
भूल जा अंजान साकी का रहम ,उस गली का भ्रम
तोड़ दे ये सीलसीला हर जख्म,दर्द को वक्त से भरना होगा
Tuesday, March 8, 2011
देख के आज मुझको शहर में
देख के आज मुझको शहर में
तेरे पैर के निचे से खिसकी जमीं सी क्यों है
नहीं रोते हो होके मुझसे जुदा
फिर तेरे शहर कि हवा मे नमी सी क्यों है
कोई रिश्ता नहीं रहा फिर भी
बरसो बाद भी यहाँ यादें थमी सी क्यों हैं
हर याद को समेट के फिर ले जाऊंगा
न जाने बरसो बाद भी दिल को तेरी कमी सी क्यों है
तेरे पैर के निचे से खिसकी जमीं सी क्यों है
नहीं रोते हो होके मुझसे जुदा
फिर तेरे शहर कि हवा मे नमी सी क्यों है
कोई रिश्ता नहीं रहा फिर भी
बरसो बाद भी यहाँ यादें थमी सी क्यों हैं
हर याद को समेट के फिर ले जाऊंगा
न जाने बरसो बाद भी दिल को तेरी कमी सी क्यों है
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